Khushi Bota Hay Aur…

मोहब्बत में एक सफार का सिलसाला घास
बिरकर कर कुन किस सो चॉए घाटी
जईस मंगा थी मुख्य ने हर दुआ मुख्य
वो बिन मेन्गे किससी को मिल गया था?
मेरी आँखों से तनहाई का मूसम
समंदर प्रतिबंध कर अशोक झंक्टा घास
जईस परवाह नहिन मेरी जारा सा भी
वो जेन रात भर क्यून जिगता घास
जईस हर मूर पर दुखर हाय मील है
खुसी को वो कहें पहंचता घास
यूसे तू तुझे किस धम्मकी ना देना
ये आष्फता हार का कफला घास
मेरी देहांत की किस्मत में पक्की है
खुसी बोटा घाट और गम काट टा घास …
-साबा सैयद

Tumhe Bhool Jaun

“तू भूल जौन, ये मुमकिन नहीं है”
तुफ़ी जौन, ये मुमकिन नहीं है
तेरी मेहफिल में अयान, ये मुमकिन नहीं है
तुफ़ी जौन …………

… 1 …
दरस को जिन्क, तारसी ये नीघे
अनके दिल से दुर जौन ये मुमकिन नहीं है,
तुफ़ी जौन,
तेरी मेहफिल में अन्ना …।

… 2 …
बासी हो टुम मेरी, राग – राग मीन दिलबार,
कभी तू ना याद आओ, ये मुमकिन नहीं है |
तुफ़ी जौन ……
तेरी मेहफिल में ऐन

… 3 …
हरेक सैरी तेरा, मुजू पाता है,
जहां ना हो टम, मुख्य वाह चाला जौन,
ये मुमकिन नहीं है | तुफ़ी जौन,
तेरी मेहफिल में आने ……।

… 4 …
मेरे दर्डे दिल की, दावा, तुम हाय तुम हो,
मुख्य आउरो का हो जान, ये मुमकिन नहीं है |
तुफ़ी जौन,
तेरी मेहफिल में ऐन

… 5 …
सीतेरे भी तारैत है, तेरे अरजू को
तेरे पास एके, मुख्य दुर चला जौन,
ये मुम्ंक नहीं है तुम छुन जौन ……
तेरी मेहफिल में आने ……।

Woh rishta tera mera hai…

ऐसा जीते क्या जो कवि आदमी से
चिरियां का जो नेल गगन से
दरवाजा देश का घर आंगन से
वो रिश्ते तेरा मेरा है

प्रतीति का जो पूजन से
और आत्मा का तन से है
वो रिश्ते तेरा मेरा है

आंसू का जो भी नयन से
बूंदों का जो देखा है
दोहर कोच्चि पर धरना गगन से
वो रिश्ते तेरा मेरा है

दिल की गेंथे खोल की देखो
मैन की आंख खोले देखो
चटक् सा विस्वास समेट
ये आपका तेरा मेरा है

Na jane kab…

सूरज ढल गया अथेरा होन लागा
फिर कूं तम्हारी यदों में मेरा दिल कोह लांगगा
अभी तक हंस गया था वह दिल
क्यूना रात एट हाय रोन लगागा
क्यूं तूरी येद एट हाय हो तुम होन लागगा

ना जेन कब आइगी फिर वो बहार
जब रविन को मीलगी तेरी वो मेई फुहार
ना जेन कब सथ दिगा दोबारा तु तुत हुए सज
जब दोबारा सूनने को मिलेगी तेरी मिलते हैं

ना जेन कब आइगी वो रात
जब मिलने को माने गीत तेरे दिल में भी उततेगी आगा
ना जेन कब हो गया दोबारा तेरा आदमी
कबी दिखाना हर पल एपन बिस्कूड मेहबोब को तर्सेन तेरे नैन

क्या भारत की गंगा पर चार दिनों का पर है है
दिल मुझे केवल कूंक एक जखम है, है
क्यूं हर पल मेरी आंखों की उम्र तेरा हैरत है
क्यूं वाश में नहिन हां मात्र तु जजाबात
कोइ से बटा दी आसा क्या हुआ है ही दिल की सथ।

केब लौट के आयेगे फेर वो दीन
जब जिया नहिन जायेगा तुम्से मील बिन
ना जेन कब आइगी वो रात
जब तुम अराम तनहाई की जोगा
तुम ख़ुद ही होोगी मैं हूं