Yeh ishq nahi aasa…

ये इश्क नाही ……

वो बोले … ..

ये इश्क नाही, इटान को समझा लेजिये …
एक अग से ​​सारी है, और देब की जान है …।

मैने कहा …
मासुम फ़ेसाने है के रूप में मोहब्बत का बस आना है ..
काज की हवेली है, बरीस का जमाना है ..
क्या शार्ट-ए-मोहब्बत है, क्या शार्ट-ए-ज़माना है ..
आज भी जाखमी है और वो जीते भी गाना है ..
Uss per utrne ki umeed bahut kam hai ..
काशी भी पूनी है, तूफ़ान भी आना है ..
समझा ये ना समझ वो औरजा-ए-मोहब्बत का ..
भीगी हुई आँखों से एक शेर सुनाता है ..
भोली अडा, कोई फ़िर इश्क की जीद पर है ..
फिर आग की सारी है … और देओब ही जान है …

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