Khushi Bota Hay Aur…

मोहब्बत में एक सफार का सिलसाला घास
बिरकर कर कुन किस सो चॉए घाटी
जईस मंगा थी मुख्य ने हर दुआ मुख्य
वो बिन मेन्गे किससी को मिल गया था?
मेरी आँखों से तनहाई का मूसम
समंदर प्रतिबंध कर अशोक झंक्टा घास
जईस परवाह नहिन मेरी जारा सा भी
वो जेन रात भर क्यून जिगता घास
जईस हर मूर पर दुखर हाय मील है
खुसी को वो कहें पहंचता घास
यूसे तू तुझे किस धम्मकी ना देना
ये आष्फता हार का कफला घास
मेरी देहांत की किस्मत में पक्की है
खुसी बोटा घाट और गम काट टा घास …
-साबा सैयद

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