Na jane kab…

सूरज ढल गया अथेरा होन लागा
फिर कूं तम्हारी यदों में मेरा दिल कोह लांगगा
अभी तक हंस गया था वह दिल
क्यूना रात एट हाय रोन लगागा
क्यूं तूरी येद एट हाय हो तुम होन लागगा

ना जेन कब आइगी फिर वो बहार
जब रविन को मीलगी तेरी वो मेई फुहार
ना जेन कब सथ दिगा दोबारा तु तुत हुए सज
जब दोबारा सूनने को मिलेगी तेरी मिलते हैं

ना जेन कब आइगी वो रात
जब मिलने को माने गीत तेरे दिल में भी उततेगी आगा
ना जेन कब हो गया दोबारा तेरा आदमी
कबी दिखाना हर पल एपन बिस्कूड मेहबोब को तर्सेन तेरे नैन

क्या भारत की गंगा पर चार दिनों का पर है है
दिल मुझे केवल कूंक एक जखम है, है
क्यूं हर पल मेरी आंखों की उम्र तेरा हैरत है
क्यूं वाश में नहिन हां मात्र तु जजाबात
कोइ से बटा दी आसा क्या हुआ है ही दिल की सथ।

केब लौट के आयेगे फेर वो दीन
जब जिया नहिन जायेगा तुम्से मील बिन
ना जेन कब आइगी वो रात
जब तुम अराम तनहाई की जोगा
तुम ख़ुद ही होोगी मैं हूं

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